Thursday 30 August 2012

शाबर मंत्र साधना से पहिले.


शाबर मंत्र अलग - अलग क्षेत्रो मे अपनी-अपनी ग्राम्य भाषा मे होते है,यह शुद्ध है अथवा नहीं ,यह जानना बहुत ही मुश्किल है,अतः कोई येसा भी शाबर मंत्र होना चाहिये ,ज्यो साधना मे हुई मंत्र त्रुटियों को दूर कर हमे शीघ्र - सिद्धि प्राप्त करवा सके .
इसलिए सर्वप्रथम मंत्र मे अक्षर या पंक्ति का दोष निवारण हेतु शाबर मंत्र सदगुरुजी कि असीम कृपा से प्रस्तुत कर रही हू,यह शाबर मंत्र सिद्धि कि प्रथम चरण है,आगे कि २ और चरण कर लिए जाये तो शाबर मंत्र मे पूर्णत्व मिलती ही है,इसमे कोई शंका नहीं,आज कि युग मे शाबर मंत्र जल्दी ही प्रभाव देती है,सिर्फ ध्यान रखने वाली एक ही बात है मंत्र कि शुद्ध उच्च्यारण,इसकी कि लिए पूर्वाभ्यास कि सहाय्यता होती है.

मंत्र:-

सिरो सरस्वती ,लछमन धारी |तिरिया बन्दो जय - जय काली |तरसो भई ,गजमत हारी | जैसे बिध्या दिल भण्डारी ,जैसे मालन गुंथे फूल ,वैसे विद्या मेरी हो सन्तुल |गौरीपुत गणपति ,मोर अच्छर बिसरो |कन्ठ चढवो ,हे माँ परमेश्वरी |


जब हमारे पास अनेक मंत्र इकठ्ठे हो जाते है,तो कभी-कभी किसी अक्षर के छुट जाने कि शंका रहेती है.या हमे कई बार शुद्ध शाबर मंत्रो कि प्राप्ति नहीं हो पाती है,अतः ऐसी दशा मे भी भगवान श्री गणेश जी कि कृपा से कोई अक्षर या पंक्ति नहीं छुटती |
पहिले उक्त मंत्र का १०,००० जाप सिद्ध कर ले ,प्रयोग से पहिले इसका उच्च्यारण करे तो किन्ही अक्षर या पंक्ति के छुटने कि दोष नहीं लगती और प्रयोग मे पूर्ण सफलता भी मिलती है,
यदि ग्रहण काल पर यह मंत्र शिव-परिवार के समक्ष १०८ बार पढ़ लिया जाये ,तो इस मंत्र का प्रभाव साधक/साधिका को प्राप्त होने लगता है.अतः किसी भी साधक/साधिका को किसी भी शबर मंत्र सिद्ध करने से पूर्व ही इस मंत्र को सिद्ध करना आवश्यक है.
निखिल प्रणाम.....................
SMILE

|| श्री बगलामुखी समर्पणम् ||

ओम नमो श्रीबग्लामुखी - स्वरूपा ,
शत्रु संहार करो देवी अनुपा |
चरण तेरे कोमल कमल जैसे ,
जिसके ह्रदय मे वही देव जैसे ||
दुःख शुम्भ ने आ घेरा है मुज़को ,
मिटा क्लेश मैया भक्त कहे तुजको |
पीताम्बरा श्रीअपराजिता तू कहाई ,
जभी भक्त सुमरे तू करती सहाई ||
गदा - चक्र - पाश - शडख् हाथो सोहे ,
चतुर्भुज रूप तेरा शिव को मोहे |
योग दीक्षा हिन् को न होता ज्ञान तेरा ,
पूर्नाभीशिक्त भी न जान पाए धाम तेरा ||
राज-राजेश्वरी अमित बलशाली ,
सर्वार्थ पूर्ण करी श्री हंसकाली |
श्रीदिव्य सिद्ध धाम गुरु रूप धरी ,
जय श्री बागला शक्त मनोरथ पूर्ण करो ||
जिव्हा पकड़कर गदा उठाएं ,
पाश डाल शत्रु को मिटाए  |
उन्मत नेत्र बक वाहन सुहाए ,
भक्त रक्षा हेतु शीघ्र ही धाए ||
सिद्धि - भक्ति - पूर्ण को है विश्वास तेरा ,
ब्रम्हास्त्र मंत्र -रूप है आधार मेरा |
लोक- लाज -प्रपंच कर्म त्यागा ,
श्री बागला चरण कमल मन लागा ||

Sunday 26 August 2012

मातंगी साधना.

प्रधान साधार विकल्प सत्ता स्वभाव भावद भुवन त्रयस्य |

सा विद्यया व्यक्तमपिहा माया ज्योतिः परा पातु जगंती नित्यं ||

दसमहाविद्या ओ मे भगवती मातंगी कि साधना अत्यंत सौभाग्यप्रद मानी जाती है,क्युकी यह केवल साधना ही नहीं अपितु सही अर्थो मे पुरे जीवन को आमूलचूल परिवर्तित कर देने कि ऐतिहासिक घटना है,इस साधना के बाद जीवन का कोई क्षेत्र अधूरा और शेष रहता ही नहीं है.ये बात किताबो मे आपको पढ़ने कि लिए मिल जायेगी परन्तु यह मेरी अनुभुतित साधना है,यह साधना संपन्न करने के बाद ही मुज़े हर क्षेत्र मे सफलता मिली है,
इस साधना के लाभ आज तक कभी पूर्ण स्पष्ट नहीं हो पाये ,क्युकी आप ज्यो भी इच्छा पूर्ती के लिए साधना करते है वह इच्छा पूर्ण हो जाती ही है,तो कैसे पता चलेगा कि इस साधना के कितने लाभ है.
मातंगी साधना कि सिद्धि पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास पर आधारित है,अन्यथा अभीष्ट सिद्धि कि संभावना नहीं बनेगी.
अक्षय तृतीया के दिन ''मातंगी जयंती'' होती है और आनेवाली वैशाख पूर्णिमा ''मातंगी सिद्धि दिवस'' होता है.इन १२ दिनों मे आप चाहे उतना मंत्र जाप कर सकते है,अगर येसी कोई साधना आप कर रहे है जिसमे सिद्धि नहीं मिल रही है या फिर सफलता नहीं मिल रही है,तो इन १२ दिनों मे आपकी मनचाही साधना मे सिद्धि प्राप्ति कि इच्छा कीजिये और मातंगी साधना संपन्न कीजिये.सफलता ही आपकी दासी बन जायेगी.
विनियोग :-
अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति हृषीविराट छंद : मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः |
ध्यान:-
श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैविर्भ्रतीं ,
पाषं खेटमथामकुशं दृध्मसिं नाशाय भक्त द्विशाम |
रत्नालंकरण ह्रीं प्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटाम् शुभां ;
मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धि प्रदाम ||

मंत्र :-

 

|| ओम ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट स्वाहा ||


इस साधना मे माँ मातंगी का चित्र,यंत्र ,और लाल मूंगा माला का महत्व बताया गया है परन्तु सदगुरुजी ने किसी शिविर मे यह कहा था सामग्री समय पे उपलब्ध ना हो तो किसी स्टील या ताम्बे कि प्लेट मे स्वास्तिक बनाये और उसपे एक सुपारी स्थापित कर दे और उसेही यंत्र माने,आपके पास मातंगी का चित्र ना हो तो आप '' माताजी ''को ही मातंगी स्वरुप मे पूजन करे,माताजी तो स्वयं ही '' जगदम्बा '' है,और माला कि विषय मे स्फटिक,लाल हकिक,रुद्राक्ष माला का उपयोग हो सकता है.
साधना दिखने मे ही साधारण हो सकती है परन्तु बहुत तीव्र है,कम से कम ११ माला जाप आवश्यक है.और कोई १२५० मालाये कर ले तो सोने पे सुहागा,आज तक इस साधना मे किसी को असफलता नहीं मिली है,इतने अच्छे योग निर्मित हुये है इस साधना के लिए और क्या चाहिये.
निखिल प्रणाम .............

पूर्ण शक्ति बीज स्थापन प्रयोग.

यह साधना एक तिव्र बीज साधना है,इस साधना कि माध्यम से शरीर मे शक्ति कि स्थापना होती है.ज्यो हमें साधना सिद्धि कि लिये महत्वपूर्ण है.साधना काल मे बहोत सारि अनुभुतिया होति है.जैसे आज्ञा चक्र जाग्रन होना या फिर गरम होना,शरिर मे गर्मि बढ जाना,बहोत ज्यादा प्यास लगना या भुक लगना,सर मे दर्द होना या फिर सर मे भारीपन लगना( जैसे शक्तीपात प्राप्ति के बाद लगता है ).शरीर मे एक प्रकार कि दिव्यता कि अनुभूति होति है. और 21 दिन बाद कुछ दिव्य विभूतियो और देवि / देवताओ कि दर्शन प्रप्ति भि होति है.और कुछ साधको ने इसि साधना से सद्गुरुजी कि दर्शन प्रप्ति कि है.यह साधना अपने आपमे पूर्ण चैतन्य साधना है ज्यो अपनी तिव्रता से साधको कि साधनाओमे प्रगति दिलाती है.इस साधना मे और भी बहोत सारि अनुभूतिया होति है ज्यो आपको साधना सम्पन्न करने के बाद महसुस करनि है...............

विधी .
सर्वप्रथम गुरुपादुका पूजन सम्पन्न किजिये और गुरुमंत्र कि 4 मालाये जाप आवश्यक है.

1) ” ॐ ह्री ॐ “  मंत्र कि गुरुमंत्र मालासे जाप करनी है और आज्ञा चक्र पे ध्यान केन्द्रित करनी है.
2) “ ॐ ऐं ॐ ‘’  मंत्र कि गुरुमंत्र मालासे जाप करनी है और कंठ पे ध्यान केन्द्रित करनी है.
3) ” ॐ श्रौं ॐ “  मंत्र कि गुरुमंत्र मालासे जाप करनी है और ह्रुदय पे ध्यान केन्द्रित करनी है.
4) ” ॐ श्रीं ॐ “  मंत्र कि गुरुमंत्र मालासे जाप करनी है और नाभि पे ध्यान केन्द्रित करनी है.

इन चारो बीज मंत्रा कि जाप 1 माला करनी है और जाप करते समय आंखे बन्द होनि चाहिये.फिर यही विधि खूलि आंखोसे करनी है और जैसे हमने अपनी शरिर पे ध्यान केन्द्रित करते हुये पहिलि विधि कि थि ठीक उसि प्रकार यही विधि श्री सद्गुरुजी कि दिव्य चित्र कि और देखते हुये उनकी शरीर पे ध्यान केन्द्रित करते हुये  जाप किजिये.ये दोनो विधिया होते ही चैतन्य मंत्र कि 5 मालाये जाप करनी है.
चैतन्य मंत्र


॥ ॐ क्लीं क्रीं रोम-प्रतिरोम चैतन्यं कुरु जाग्रय जाग्रय क्रीं क्लीं ॐ फट ॥

यह साधना आप कभीभी कर सक्ते है परंतु खाली पेट ( पेट मे भूक होनि चाहिये ),और कम से कम  11 दिन करनी है .और साधना काल मे कम से कम वार्तालाप किजिये...............................

जय निखिलेश्वर.......................

Wednesday 22 August 2012

रोग बाधा निवारण साधना.(पाताल क्रिया)

यह साधना पाताल क्रिया से सम्बंधित है,इस साधना कि कई अनुभूतिया है,और साधना भि एक दिन कि है.कई येसे रोग या बीमारिया है जिनका निवारण नहीं हो पाता ,और दवाईया भि काम नहीं करती ,येसे समय मे यह प्रयोग अति आवश्यक है.यह प्रयोग आज तक अपनी कसौटी पर हमेशा से ही खरा उतरा है .

प्रयोग सामग्री :-
                        एक मट्टी कि कुल्हड़ (मटका) छोटासा,सरसों का तेल ,काले तिल,सिंदूर,काला कपडा .
प्रयोग विधि :-

                       शनिवार के दिन श्याम को ४ या ४:३० बजे स्नान करके साधना मे प्रयुक्त हो जाये,सामने गुरुचित्र हो ,गुरुपूजन संपन्न कीजिये और गुरुमंत्र कि कम से कम ५ माला अनिवार्य है.गुरूजी के समक्ष अपनी रोग बाधा कि मुक्ति कि लिए प्रार्थना कीजिये.मट्टी कि कुल्हड़ मे सरसों कि तेल को भर दीजिये,उसी तेल मे ८ काले तिल डाल दीजिये.और काले कपडे से कुल्हड़ कि मुह को बंद कर दीजिये.अब ३६ अक्षर वाली बगलामुखी मंत्र कि १ माला जाप कीजिये.और कुल्हड़ के उप्पर थोडा सा सिंदूर डाल दीजिये.और माँ बगलामुखी से भि रोग बाधा मुक्ति कि प्रार्थना कीजिये.और एक माला बगलामुखी रोग बाधा मुक्ति मंत्र कीजिये.

मंत्र :-

|| ओम ह्लीम् श्रीं ह्लीम् रोग बाधा नाशय नाशय फट ||


मंत्र जाप समाप्ति के बाद कुल्हड़ को जमींन गाड दीजिये,गड्डा प्रयोग से पहिले ही खोद के रख दीजिये.और ये प्रयोग किसी और के लिए कर रहे है तो उस बीमार व्यक्ति से कुल्हड़ को स्पर्श करवाते हुये कुल्हड़ को जमींन मे गाड दीजिये.और प्रार्थना भि बीमार व्यक्ति के लिए ही करनी है.चाहे व्यक्ति कोमा मे भि क्यों न हो ७ घंटे के अंदर ही उसे राहत मिलनी शुरू हो जाती है.कुछ परिस्थितियों मे एक शनिवार मे अनुभूतिया कम हो तो यह प्रयोग आगे भि किसी शनिवार कर सकते है.

जय निखिलेश्वर........................

Tuesday 21 August 2012

स्फ़टिक शिवलिंग-भाग्योदय साधना.

मनुष्य मूलत: पृथ्वी का ही भाग है,और इसी तत्व से उसमे मानसिक तथा शारीरिक स्थायित्व आती है.इस प्रकार स्फ़टिक पृथ्वि तथा अन्य तत्वो से ग्रहो से उर्जा ग्रहण कर मनुष्य मे पुन: सन्चारीत करने कि शक्ति रखती है.एक प्रकार से यह ''शक्ति केंन्द्र'' है,जो उर्जा को ग्रहण कर नियन्त्रित करती है.उसे इस प्रकार से प्रवाहीत करती है कि व्यक्ती उस उर्जा को ग्रहण कर सके और देह कि उर्जा मे गुणात्मक परिवर्तन कर सके.यहा तक कि उच्च कोटि के शिवलिंग स्फ़टिक शिवलिंग होते है.जिसके सामने बैठने मात्र से उर्जा भाव संचारित होति है.किसी महा-शिवरत्रि कि शिवीर मे सदगुरुजीने तीन श्लोक बताये थे,ज्यो इस प्रकार है......................


स्फ़टिक लिंगमाराघ्यं सर्वसौभाग्यदायकम |धनं धान्यं प्रतिष्ठाम च आरोग्यं प्रददाती स: ||
स्फटिक लिंगं प्रतिष्ठांप्य याजती यो पुमान |रोगं शोकं च दारिद्रयं सर्व नश्चती तद गृहात ||
पूजनादास्य लिंगस्य अभ्यर्चनात सश्रध्दया |सर्वपाप विनिर्मुक्तः शिव सायुज्यमाप्नुयात ||

 

 

साधना विधि :-

 

 

किसी भी सोमवार को स्फटिक शिवजी को अक्षत के आसन पे स्थापित कीजिये,दक्षिणमुख होकर आसन पर बैठे.फिर दूध,दही घी,शहद, और शक्कर से निम्न मंत्रो के साथ स्नान कीजिये .

 

 

ॐ शं सद्दोजाताय नम:दुग्धं स्नानं समर्पयामि |
ॐ वं वामदेवाय नम:दधि स्नानं समर्पयामि |
ॐ यं अघोराय नम:घृत स्नानं समर्पयामि |
ॐ नं तत्पुरुषाय नम:मधु स्नानं समर्पयामि |
ॐ मं ईशानाय नम:शर्करा स्नानं समर्पयामि |

फिर शुद्ध जल से स्नान कीजिये तथा दुसरे पात्र में कुंकुंम से स्वस्तिक बनाकर शिवलिंग को स्थापित कीजिये.धुप दीप पुष्प तथा अक्षत आदि से ''ॐ नम:शिवाय'' बोलते हुए संक्षिप्त पूजन कीजिये.इसके बाद दूध से बने नैवेद्य का भोग अर्पित कीजिये.फिर शिवलिंग पर दुग्ध मिश्रित जल से अभिषेक करते हुए निम्न मंत्र की १००८ बार जप करे.



मंत्र :-||

ॐ शं शंकराय स्फटिक प्रभाय ॐ ह्रीं नम:||


अभिषेक वाले जल देवता को प्रणाम करते हुए प्रसाद रूप में ग्रहण कीजिये,यह प्रयोग २१ दिन का है ,इसके बाद शिवालिंग जी को पूजा स्थान में स्थापित कर दीजिये.

 

 

जय निखिलेश्वर................................

कामख्या साधना

यह मंत्र वेदोक्त है और पुर्णता प्रभवि भि है, सिर्फ 3 हि दिन मे इस मंत्रा कि अनुभुतिया हमारे सामने आती है,इस साधनासे कइ अपुर्ण इच्याये त्वरित पूर्ण हो जाति है,परंतु मन मे अविश्वास जाग्रत हो तो साधना कि अनुभुतिया नहीं मिल पाति है, और ये साधना कम से कम 11 दिन तो करनि हि चहिये.
साधना किसी भि नवरात्रि मे कर सक्ते है, रोज मंत्र कि 108 बार पाठ मतलब 1 माला करनि है, आप चाहे तो अपनी अनुकुलता के नुसार 3, 5, या 11 मालाये भि कर सक्ते है,आसन लाल रंग कि हो वस्त्र कोइ भि हो सक्ति है,माला लाल हकिक या रुद्राक्ष कि.
मा भगवति या कामाख्या जि का चित्र स्थापित किजिये और चमेलि कि तेल का दिपक आवश्यक है,साथ मे साधना से पुर्व हि गुरुपूजन और गुरुमंत्रा कि जाप भि आवश्यक है,फिर कालभैरव मंत्रा कि 21 ,51 या 108 बार जाप भि आवश्यक है,और सद्गुरुजि से अपनि कामनापुर्ति हेतु प्रार्थना किजिये और कालभैरव जि से आज्ञा मांगिये.



॥ ॐ ह्रीम कालभैरवाय ह्रीम ॐ ॥  

 अपनी मनोकामना का उच्यारन करते हुये एक लाल कनेर का फूल भगवति जि कि चरणोमे समर्पित किजिये और मंत्र जाप प्रारम्भ किजिये. 

मंत्र : -

 ॐ कामाख्याम कामसम्पन्नाम कामेश्वरिम हरप्रियाम ।

       कामनाम देहि मे नित्यम कामेश्वरि नमोस्तुते ॥



जय निखिलेश्वर...........................................